एक प्रयास है कि कुछ अच्छा हो जाए, पर अपनों की अनदेखी से मजबूर हूँ।
पल-पल समर्पण चाहता हूँ, पर पास होते हुए क्यो दूर हूँ?😇
पैर में हल्का-सा दर्द, पर आंखों में रखता हूँ सपना।
बस कोशिश यही कि बिछुड़े ना कोई अपना।।
सर्वे भवन्तु सुखिनः कह चुका हूं कई दफा।
फिर भी सामंजस्य का नशा रखता है खफा।।🤔
किसी को नाराज करना मेरे जेहन में नही।
सद्प्रयासों के बावजूद यह सूरत क्यो बदलती नही??
गलतफहमी का नशा कुछ यूँ चढ़ा है,अपनो को पराये होते देखा है।
इसलिए कहते है यह नशा ही,एक विभाजन रेखा है।।
कुछ संज्ञान से,कुछ अनुभवियों से सीखा है।
जहाँ अपनों को सुना नही जाता,वहाँ का आनंद ही फीका है।।
आज अमर रहे,कल किसने देखा है?
जहाँ रहे,बस प्रेम अमर रहे,यही तो जीवन-रेखा है।
आना-जाना,मिलना-बिछुड़ना ही संसार का नियम है
अपणायत बनी रहे हैं, यही तो संयम है।
सत्य का साथ हो,गलतफहमियां दूर हो।
एक अरदास रब से कि बस! कोई न मजबूर हो।।
लेखक:- आईदानाराम देवासी
करवाड़ा✍🏻